गाजीपुर, 25 जून। जल बिरादरी उत्तर प्रदेश के तत्वाधान में गाजीपुर स्थित एक निजी मैरिज हॉल में “जलवायु परिवर्तन एवं नदी संरक्षण जनचेतना अभियान” विषयक एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य जनमानस में जल एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना था। इस अवसर पर जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध पर्यावरणविद् राजेन्द्र सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, "आज असंतुलित जलवायु परिवर्तन हमारे पर्यावरण के तीन प्रमुख घटकों—नदी, हरियाली और जीव-जंतुओं के लिए अभिशाप बन गया है।" उन्होंने चेताया कि यदि जलवायु संकट को समय रहते नहीं संभाला गया, तो इसका भयावह प्रभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों को जल संकट की ओर धकेल देगा। उन्होंने इसे एक ‘राष्ट्रीय आपदा’ बताते हुए कहा कि इसका समाधान केवल जनांदोलन और जनसहभागिता में निहित है।
राजेन्द्र सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि भू-जल का गिरता स्तर और नदियों का सूखना न केवल जैव विविधता के लिए खतरा है, बल्कि यह कृषि, पेयजल और पारिस्थितिक संतुलन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। उन्होंने आह्वान किया कि "हर नागरिक को जल संरक्षण के लिए सत्याग्रह की भावना से आगे आना होगा।" उनका मानना है कि यदि देश के नागरिक संगठित होकर जल संरक्षण हेतु कदम उठाते हैं, तो भारत को बाढ़ और सूखे जैसी विपत्तियों से मुक्त किया जा सकता है।
कार्यक्रम में गांधी संस्थान, दिल्ली के वरिष्ठ प्रतिनिधि रमेश भाई ने जल संकट को जीवन संकट बताते हुए कहा कि "नदियों का संरक्षण केवल पारिस्थितिकी का ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था का प्रश्न है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह समय की मांग है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और जल संरक्षण के अभियान से जुड़े।"
जल संरक्षण पर दीर्घकालिक शोध कर रहे डॉ. लल्लन प्रसाद कुशवाहा ने अपने उद्बोधन में कहा कि, "जलवायु परिवर्तन और हरियाली के साथ न्याय तभी संभव है, जब प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी एवं हकदारी स्वयं तय करेगा। जब तक जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं होगी, तब तक किसी भी नीति का अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सकता।"
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीकांत पांडेय ने की। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी मिलकर न केवल सरकार से अपेक्षा करें, बल्कि स्वयं भी व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जल एवं पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनें।
इस अवसर पर अर्जुन पांडेय, समीम अब्बासी, नर्वदेश्वर राय, रमेश भाई, बंशीधर कुशवाहा, मदन कुशवाहा, फरीद आलम, ईश्वर चंद, जनक कुशवाहा, अच्छे लाल मौर्य, प्रशांत सिंह, उमेश चंद श्रीवास्तव, सागर कुशवाहा, अखिलेश कुशवाहा, अखिलेश्वर कुशवाहा, राजकुमार गुप्ता, प्रभुनाथ पांडे, वंश बहादुर कुशवाहा, आयूब अंसारी सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को सार्थक बनाया और विचार व्यक्त किए।
सभी वक्ताओं का मत था कि जलवायु परिवर्तन की गति अत्यंत भयावह हो गई है। लगातार बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा, बाढ़ और सूखे की स्थितियां इस बात का संकेत हैं कि यदि अभी भी समय रहते हम नहीं चेते, तो इसका प्रभाव केवल पर्यावरण पर नहीं, अपितु हमारी संस्कृति, कृषि, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर भी गहराई से पड़ेगा।
कार्यक्रम में यह संकल्प लिया गया कि जल संरक्षण को एक जन आंदोलन का स्वरूप दिया जाएगा। गाँव-गाँव, शहर-शहर जाकर लोगों को जागरूक किया जाएगा, भू-जल रिचार्ज हेतु वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन दिया जाएगा और नदियों के पुनर्जीवन की दिशा में ठोस कार्ययोजना बनाई जाएगी।
यह आयोजन न केवल एक विमर्श का मंच था, बल्कि यह एक आह्वान था, उस परिवर्तन का, जो नदियों को पुनर्जीवन दे सके, हरियाली को संरक्षित रख सके और जीव-जंतुओं के अस्तित्व को बनाए रख सके। जल पुरुष राजेन्द्र सिंह के ओजस्वी विचारों ने उपस्थित जनसमुदाय को न केवल प्रेरित किया, बल्कि यह संकल्प भी दिलाया कि अब पानी का हर कतरा सहेजना है।