गाजीपुर। पूर्वांचल के प्रख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक और कवि डा. एमडी सिंह की नई कविता 'विश्राम मित्र अभी नहीं' ने साहित्य जगत में हलचल मचाई है। अपनी कविता और गीत संग्रह में भोजपुरी का सम्मिलन कर उन्होंने उसे नया स्वरूप दिया है। कोविड महामारी के दौरान अपनी अथक सेवा के लिए जिले में इन्हें ‘कभी न थकने वाला इंसान’ के उपनाम से नवाजा गया था।

डा. एमडी सिंह प्रचंड सर्दी में भी बिना ऊनी वस्त्र के रहते हुए, संडे हो या मंडे, हर दिन सुबह आठ बजे अपनी क्लीनिक में रोगियों का इलाज करते हैं। उनकी यह निरंतरता और समर्पण ने उन्हें जिले के प्रतिष्ठित चिकित्सकों में शुमार कर दिया है। होम्योपैथिक जगत में उनके योगदान को लेकर डा. एमडी सिंह का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।

उनकी नई कविता 'विश्राम मित्र अभी नहीं' जीवन के संघर्ष और अविराम यात्रा को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती है। इस कविता में डा. सिंह ने जीवन के प्रति उत्साह और ऊर्जा को दर्शाया है, जिसमें वे कहते हैं कि जीवन का नाम निरंतर चलते रहना है, और कभी भी विश्राम का समय नहीं आता। कविता के कुछ प्रमुख बोल इस प्रकार हैं:

"नहीं नहीं नहीं नहीं विश्राम मित्र अभी नहीं,
कह रही है जिंदगी विश्राम मित्र अभी नहीं,
चल पड़े तो पांव हैं, लग गए तो दांव हैं,
चलते मिले तो शहर ठहरे मिले तो गांव हैं,
चलो बढ़ो चलो बढ़ो, विराम मित्र अभी नहीं,
कह रही है जिंदगी विश्राम मित्र अभी नहीं।"

डा. एमडी सिंह की कविता में जीवन के संघर्ष, प्रेरणा और निरंतरता की एक नई छवि उभर कर सामने आती है। उन्होंने अपनी भावनाओं को इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है, जिसे जिले के लोग बेहद सराह रहे हैं। इसके साथ ही, उनकी चर्चित पुस्तक 'कुकुर' की कुछ कविताओं को पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के एमए फाइनल वर्ष के समेस्टर में भी शामिल किया गया है।

डा. सिंह की जीवन यात्रा और उनके द्वारा व्यक्त की गई कविताएं, लोगों को प्रेरणा और उत्साह देती हैं, और यही कारण है कि वे न केवल एक महान चिकित्सक बल्कि एक संवेदनशील कवि भी माने जाते हैं।