गाजीपुर। उत्तर प्रदेश सरकार जहां गौवंश संरक्षण और गौशालाओं के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत चौंकाने वाली और शर्मनाक तस्वीर पेश कर रही है। जनपद गाजीपुर के सदर तहसील अंतर्गत छावनी लाइन के राजस्व गांव सरैया खास की गौशाला में कई मृत गायों के मिलने की खबर ने शासन-प्रशासन की पोल खोल दी है। यह मामला तब सामने आया जब गौशाला से सटा हुआ प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक और स्थानीय ग्रामीणों ने संदिग्ध गतिविधियों और दुर्गंध के चलते शक जताया और मीडिया को सूचना दी।

मीडिया टीम की मौके पर मौजूदगी ने खोली असलियत

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सूचना मिलते ही एक स्थानीय मीडिया टीम मौके पर पहुंची और गौशाला परिसर की पड़ताल शुरू की। इस दौरान गौशाला में एक बड़े गोबर के ढेर से तेज़ दुर्गंध आ रही थी। जब टीम ने उस ढेर की सतह को हटवाया तो उसके नीचे मृत गायों के अवशेष मिलने लगे। उस वक्त पशु चिकित्सा अधिकारी भी मौजूद रहे, गायों के शरीर अभी सड़ने की अवस्था में थे, तो कुछ की हड्डियाँ दिखाई देने लगी थीं।

यह दृश्य न सिर्फ़ मानवता को झकझोरने वाला था, बल्कि सरकार की गौशाला नीति और पशुपालन विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

ग्रामीण बोले – होती है गायों की मौत, कोई देखभाल नहीं

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गांव के ही सुरेश कुमार कुशवाहा कहते हैं कि कई गायें भूखी-प्यासी पड़ी रहती हैं। समय से न चारा मिलता है, न पानी। बीमार गायों की तो कोई सुध तक नहीं लेता। जिसके कारण से गाय मर रही है। 

एक अन्य ग्रामीण का कहना है कि “गौशाला में सरकारी फंड तो आता है, लेकिन उसका उपयोग कहाँ होता है, यह किसी को नहीं पता। 

Chief Veterinary Officer को फोन पर दी गई तत्काल सूचना, अधिकारियों में मचा हड़कंप

मीडिया टीम द्वारा जब यह दृश्य रिकॉर्ड किया गया और Chief Veterinary Officer को फोन पर पूरे मामले से अवगत कराया गया, तो प्रशासन में हड़कंप सा मच गया। कुछ ही घंटों के भीतर मौके पर पशु चिकित्सा अधिकारी, ग्राम पंचायत सचिव के प्रतिनिधि, ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि, और ब्लॉक के अधिकारियों की टीम पहुंच गई।

अधिकारियों ने दी सफाई, मगर सवाल बाकी

घटनास्थल पर पहुंचे पशु चिकित्साधिकारी ने मीडिया से बातचीत में कहा, “हमें सूचना मिलते ही हम तुरंत जांच के लिए आए हैं। प्रारंभिक जांच में 5-6 गायों के शव की पुष्टि हुई है। यह गंभीर मामला है। उच्च अधिकारियों को सूचना भेजी जाएगी।”

जब उनसे पूछा गया कि गौशाला के प्रबंधन और गायों की देखभाल की जिम्मेदारी किसकी है, तो उन्होंने कहा, “यह जिम्मेदारी ग्राम पंचायत और ब्लॉक के अधिकारियों की होती है। चिकित्सा सहायता हमारी ओर से दी जाती है।”

गोबर में गायों को दफन करना: न सिर्फ़ अमानवीय, बल्कि अवैध भी

उत्तर प्रदेश गौवध निवारण अधिनियम, पशु क्रूरता अधिनियम, और स्वच्छता मानकों के तहत यू पी सरकार किसी भी गौशाला के पशु की मृत्यु के बाद उसके शव को उचित ढंग से निस्तारित करवाने के आवश्यक दिशा निर्देश दिये है। लेकिन सरैया खास में गायों को गोबर के नीचे दबा देना न केवल घोर लापरवाही है, बल्कि यह पूरी प्रक्रिया को छिपाने का प्रयास प्रतीत होता है।

 यह न सिर्फ़ सरकारी धन के दुरुपयोग की ओर इशारा करता है, बल्कि पशुओं के साथ की जा रही निर्ममता को भी उजागर करता है।

योगी सरकार की लोकप्रिय गौशाला योजना पर प्रश्न

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं गायों की सुरक्षा और सेवा को वरीयता देते रहे हैं। गाजीपुर जनपद में लगभग 65 गौशालाएं खोली गईं, करोड़ों रुपये अनुदान में बांटे गए, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे भिन्न है।

सरैया खास की घटना योगी सरकार की गौ संरक्षण योजनाओं की साख पर बट्टा लगाती है। शासन की मंशा चाहे जितनी भी नेक हो, यदि निचले स्तर पर उसकी ईमानदारी से क्रियान्वयन न हो, तो परिणाम इसी तरह हो सकते हैं।

ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव की भूमिका संदिग्ध

ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव को लंबे समय से गायों की स्थिति की जानकारी रही होगी, लेकिन उन्होंने चारे-पानी की उचित व्यवस्था नहीं करवाई। गौशाला का बजट आता है, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं दिखता।

कुछ ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कभी-कभी गायों को जान-बूझकर मरने के बाद चोरी-छिपे गोबर के ढेर में दफना दिया जाता है, ताकि कोई सवाल न पूछे।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी शुरू

घटना सामने आने के बाद स्थानीय विपक्षी नेताओं ने योगी सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। एक क्षेत्रीय दल के प्रवक्ता ने कहा, “जब सरकार गायों के नाम पर वोट मांगती है, तो उन्हें मारने वाले इन दोषियों को कौन बचा रहा है? क्या यही है रामराज्य?”

वहीं एक स्थानीय नेता ने कहा, “घटना बेहद निंदनीय है, दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार की नीति स्पष्ट है – गौ रक्षा सर्वोपरि है।”

बीडीओ सदर गाजीपुर ने कहा दोषियों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा 

बीडीओ ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए, मीडिया को बताया कि “यदि कोई भी दोषी पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”

पशु प्रेमियों और समाजसेवियों में आक्रोश

स्थानीय गौ-सेवा संगठन के कार्यकर्ताओं ने इस कृत्य की निंदा की है और दोषियों के ऊपर कार्रवाई की मांग की है। गौशालाओं का मतलब होता है सेवा, न कि कब्रगाह। गायों की ये हालत देखकर दिल दहल जाता है।

सवालों के घेरे में पूरी व्यवस्था

इस घटना ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि:

क्या गौशालाओं के नाम पर केवल कागज़ी व्यवस्था चल रही है?

ट्रांसपेरेंसी की जगह लापरवाही और भ्रष्टाचार क्यों हावी है?

पशु चिकित्सा विभाग की निगरानी कहां थी?

क्या प्रशासन सिर्फ़ मीडिया की सूचना पर जागेगा?

 गौशालाओं को बचाने की ज़रूरत

सरैया खास की घटना अकेली नहीं है। यह पूरे सिस्टम की असंवेदनशीलता, लापरवाही और जवाबदेही की कमी का आईना है। गाय केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक करुणा और उत्तरदायित्व की पहचान भी है। जब तक सरकारें और समाज दोनों मिलकर गौशालाओं पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक गायें मरती रहेंगी और गोबर की कब्रगाहें बनती रहेंगी।

सरकार को चाहिए कि केवल बजट बढ़ाने के बजाय, निगरानी और जवाबदेही बढ़ाई जाए। ताकि हर गाय सिर्फ़ तस्वीरों में नहीं, हकीकत में भी सुरक्षित रह सके।