गाजीपुर, मरदह। "अदृश्य अलख से आत्मा को लखाने आते हैं संत महापुरुष" – इसी दिव्य भाव के साथ बुधवार को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के मरदह क्षेत्र स्थित ग्राम घरिया तथा बलिया जनपद के नागपुर (रसड़ा) गांव में एक दिवसीय सत्संग का आयोजन किया गया। इस आध्यात्मिक महोत्सव में परम पूज्य संत स्वामी जय गुरुबंदे जी ने सैकड़ों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक जागृति का संचार किया।
स्वामी जी ने अपने ओजस्वी प्रवचन में कहा कि जब मानव किसी सच्चे संत महापुरुष से जुड़ता है, तो वह जाति-पांति, धर्म-मजहब, पाखंड और आडंबर से ऊपर उठकर प्रेम, सेवा, भक्ति, सत्संग और नाम-स्मरण के मार्ग पर अग्रसर होता है। इसी मार्ग से होकर आत्मा अपने मूल स्रोत – परमात्मा – से मिलन करती है।
मानव से महामानव की यात्रा
स्वामी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "जब जीव ध्यान और भजन की गहराइयों में उतरता है, तो आत्मज्ञान का साक्षात्कार करता है। वह ‘तेरा-मेरा’ और ‘अपना-पराया’ जैसे संकीर्ण भावों को त्याग कर, संपूर्ण सृष्टि में एकत्व का अनुभव करता है। यही आत्मज्ञान उसे महामानव बना देता है, और वह अमर लोक की ओर बढ़ता है, जहां सुख-दुख, पाप-पुण्य, दिन-रात और माया का कोई अस्तित्व नहीं रहता।"
स्वामी जय गुरुबंदे जी ने सत्संग के दौरान यह भी बताया कि यह कोई कल्पनात्मक बातें नहीं हैं। जो भी seeker (जिज्ञासु) सच्चे मन से सतगुरु को अपना इष्ट बनाकर ध्यान और भजन में लीन होता है, वह स्वयं इस सत्य का अनुभव कर सकता है।
सतगुरु ही बनते हैं आत्मा के नाविक
संतश्री ने सतगुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि केवल सच्चा गुरु ही उस "अलख सत्ता" का दीदार करवा सकता है, जो इंद्रियों की पकड़ से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि जब जीव अपने हृदय में भक्ति और समर्पण का दीप जलाता है, तब सतगुरु कृपा करके उसे "हंस" बना देते हैं – जो माया रूपी संसार सागर को पार कर आत्मा को परमात्मा से मिला देता है।
जनमानस में दिखी अपार श्रद्धा
कार्यक्रम में स्थानीय और आस-पास के गांवों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। भजन, कीर्तन और संतवाणी से भरा यह आयोजन आत्मिक शांति और दिव्यता से परिपूर्ण रहा। श्रद्धालुओं ने संत श्री के चरणों में बैठकर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया।
स्वामी जय गुरुबंदे जी का यह सत्संग न केवल एक आयोजन था, बल्कि वह अलौकिक संदेश था, जो जीवन को दिशा देने वाला बन गया। जब आत्मा, भजन और ध्यान से जुड़ती है, तब मानव अपने असली स्वरूप को पहचान कर, अध्यात्म की उस ऊँचाई को छू लेता है, जहां केवल प्रेम, सेवा और परमात्मा का वास होता है।