गाजीपुर। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर ज़िले में भांवरकोल ब्लाक के भुसहुला गाँव के रहने वाले योगेन्द्र अपने घर में, अपने गांव में हर तरह के काम करते दिख जाएँगे, लेकिन काग़ज़ों पर उनकी मौत हो चुकी है। यानि कि मतदाता सूची के हिसाब से उनकी मौत हो चुकी है। वे उन जीवित लोगों में से हैं, जो सरकारी काग़ज़ में मृत घोषित किए जा चुके हैं। जिन लोगों की काग़ज़ पर मौत हो चुकी है, उनका दाह संस्कार, अंत्येष्टि किसने किया और कब किया गया। कौन बताएगा। और गाजीपुर जनपद में यह कोई पहला मामला नहीं हो सकता है। बल्कि अपने को जीवित करने और रहने की जद्दोजेहद में योगेन्द्र और अन्य लोग जैसे न जाने कितने लोग होगे। 

 बताया गया कि पूरा मामला 2015 से लेकर 2020 के बाद 2021 के चुनाव में सम्बन्धित अधिकारियों की लापरवाही या उदासीनता का परिणाम हो सकता है। जिसमे लगभग 17 मतदाताओं को मृतक दिखाया गया। यानि कि मार दिया गया। ग्रामीणों ने बताया की पूर्व प्रधान और सचिव की जुगल बंदी से जीवित लोगो को मृतक दिखा कर चुनावी लाभ लिया और दिया गया। इस खेल में पूर्व प्रधान, सचिव के अलावा बीएलओ, सुपरवाइजर और अन्य लोग भी शामिल बताएं जाते है। लगभग 60- 70 मतदाताओं को अन्य ग्राम पंचायत में नाम होना, दिखा कर नाम काटा गया है। अगर शिकायतकर्ता रामप्रवेश राम समाजसेवी की बात माने तो उन्होंने अपने स्तर से ब्लॉक, तहसील, जिला एवं प्रदेश स्तर के अधिकारियों से मृतक ग्रामीणों को जीवित रहने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए। लोकतांत्रिक तरीके से वोट देने का अधिकार एवं मृत्यु से पहले मानवाधिकार तथा जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जांच और न्याय की गुहार लगाई है। और सबसे बड़ा सवाल तो यह उठ रहा है कि 17 मृतकों में से शायद दो लोगो का वास्तव में पता नहीं की वे जीवित है या नहीं, साधारण या असाधारण मौत हुई, वाकई में इसका जबाव कहा मिलेगा। 

बताया गया कि इन 17 मृतकों में कुछ पेंशनर या नौकरी पेशा तो कुछ ग़रीब हैं और कुछ इतने पढ़े लिखे भी नहीं हैं कि उन्हें आसानी से जानकारी मिल पाए। यहाँ पर शिकायत कर्ता समाजसेवी ने हिम्मत दिखाई है तो पता चल गया, मामला सामने आ गया, वरना किसी को पता भी नहीं चलता। हालाँकि पीड़ितों की लड़ाई अब भी जारी है और वो इस जद्दोजहद में लगे हैं कि उन्हें ज़िंदा साबित करके उन्हे उनका हक दिया जाए।