हादसों का दर्दनाक सिलसिला
पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-31 (वाराणसी–गाजीपुर मार्ग) पर स्थित इस क्रॉसिंग के पास सैकड़ों दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। हाल ही में 6 जुलाई को नसीरपुर निवासी जितेंद्र पाल उर्फ़ जित्तु के परिवार के चार सदस्यों की एक ही दिन सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। इस हादसे ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया था और परिवार ही नहीं बल्कि पूरा गांव शोक में डूब गया। इसके कुछ ही दिन बाद, कोन्हवा रूहीपुर निवासी सचिन कुमार भी इसी क्रॉसिंग पर दुर्घटनाग्रस्त होकर गंभीर रूप से घायल हो गए और अब तक वाराणसी के अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई नई बात नहीं है। इस मार्ग पर गाड़ियों की रफ्तार इतनी तेज रहती है कि सड़क पार करना न केवल खतरनाक बल्कि मौत को दावत देने जैसा हो गया है। छात्रों और बुजुर्गों के लिए यह रोज़ की पीड़ा में बदल चुका है।
अधूरा काम बना मौत का कारण
जनता और नेताओं का आरोप है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अधिकारी इस स्थिति के प्रत्यक्ष जिम्मेदार हैं। सत्याग्रह में शामिल पीजी कॉलेज छात्र संघ के पूर्व महामंत्री एवं समाजवादी पार्टी के नगर अध्यक्ष दिनेश सिंह यादव ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि दुर्घटनाओं के बाद अधिकारियों ने यहां नैरो कट लगाने का कार्य शुरू तो किया, लेकिन उसे अधूरा छोड़कर चले गए। आधे-अधूरे काम ने स्थिति को और अधिक खतरनाक बना दिया है।
उन्होंने कहा कि खांवपुर के पास लगे स्ट्रीट लाइटें भी महीनों से बंद हैं, जिस कारण रात में यहां से गुजरने वाले लोगों को और अधिक जोखिम उठाना पड़ता है। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकारी उसी रास्ते से नियमित रूप से गुजरते हैं, लेकिन उन्हें न तो खामियां दिखाई देती हैं और न ही जनता की दर्दभरी आवाज सुनाई देती है।
जनता का धैर्य टूटा, शुरू हुआ सत्याग्रह
लगातार हो रही मौतों और घायलों की बढ़ती संख्या ने आखिरकार स्थानीय जनता को आंदोलन के लिए प्रेरित कर दिया। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते स्पीड ब्रेकर, अंडरपास या ओवरब्रिज के निर्माण जैसे ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।
सत्याग्रह में मौजूद लोगों का कहना था कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि सीधा जनजीवन और सुरक्षा का सवाल है। यह मार्ग वाराणसी-गाजीपुर को जोड़ने वाली प्रमुख सड़क है, जिससे प्रतिदिन हजारों लोग सफर करते हैं। लेकिन आज हालात यह हैं कि सड़क पर चलना किसी जुए की तरह हो गया है—किसी की जान कब किस वाहन के नीचे चली जाए, कोई भरोसा नहीं।
क्षेत्रीय एकता और चेतावनी
सत्याग्रह में छात्रों से लेकर व्यापारी तक बड़ी संख्या में शामिल हुए। सभी की एक ही मांग रही—जनता की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए, हादसों की रोकथाम के लिए पुख्ता कदम उठाए जाएं।
दिनेश सिंह यादव ने चेतावनी दी, “अगर अधिकारियों ने जल्द ही हमारी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया और यहां निर्माण व मरम्मत का कार्य शुरू नहीं किया, तो हम लोग यह लड़ाई अनवरत जारी रखेंगे। जब तक मांगे पूरी नहीं होंगी, तब तक आंदोलन रुकेगा नहीं।”
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
अब तक प्रशासन और संबंधित विभाग की चुप्पी भी जनता के गुस्से की वजह बनी हुई है। दुर्घटनाओं की खबरें अखबारों में छपने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी मौके का मुआयना कर हालात सुधारने के बजाय चुपचाप गुजर जाते हैं। यह लापरवाही लोगों की जान से खिलवाड़ जैसा प्रतीत हो रही है।
रसुलपुर (बेलवां) शेखपुर क्रॉसिंग पर मामला सिर्फ दुर्घटनाओं का नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की आवाज और जनसुरक्षा का मुद्दा बन चुका है। एक के बाद एक होती मौतों और घायलों की चीख ने यह साबित कर दिया है कि अब समय गंवाने की गुंजाइश नहीं बची। जनता का सत्याग्रह प्रशासन के लिए एक चेतावनी है—अगर जनभावनाओं को नज़रअंदाज़ किया गया, तो यह आंदोलन किसी बड़े जनआंदोलन का रूप ले सकता है।