रिपोर्ट: सऊद अंसारी
गाज़ीपुर। गाज़ीपुर जनपद में शासन और विभागीय आदेशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है। बिना वैध मान्यता के वर्षों से संचालित हो रहे चश्मे रहमत ओरिएंटल कॉलेज नामक संस्थान में न केवल पढ़ाई जारी है, बल्कि 32 से अधिक शिक्षक एवं कर्मचारी शासन द्वारा वेतन भी प्राप्त कर रहे हैं। शिकायतों और दस्तावेज़ी साक्ष्यों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई न होना, सरकारी व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करता है।
मदरसा नहीं, सिर्फ़ एक सोसाइटी!
शिकायतकर्ता हिदायतुल्लाह अंसारी, निवासी रजदेपुर शहरी मोहल्ला, ने मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित विभागों तक बार-बार दस्तक दी है। उनका दावा है कि चश्मे रहमत ओरिएंटल कॉलेज मदरसा नहीं, बल्कि एक पंजीकृत सोसाइटी है। इसके बावजूद यहां प्रधानाचार्य, शिक्षक और कर्मचारी नियुक्त हैं और उन्हें राज्य सरकार से वेतन भी मिल रहा है।
साक्ष्यों के बावजूद चुप्पी
शिकायत के बाद जब सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के अंतर्गत जानकारी मांगी गई, तब जनसूचना आयोग ने संबंधित अधिकारियों पर 25-25 हज़ार रुपये तक का अर्थदंड भी लगाया। फिर भी अधिकारियों ने जानकारी देने से परहेज़ किया। मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज हुई, लेकिन वहां से भी गोलमोल जवाब देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
विभागीय चुप्पी और “पुरानी परंपरा” का हवाला
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सच्चिदानंद तिवारी ने अपनी सफाई में कहा कि "मदरसा में तैनात शिक्षकों का वेतन एडी बेसिक से प्राप्त पत्रावलियों के आधार पर किया जा रहा है।" उन्होंने माना कि संस्थान की मान्यता की प्रति विभाग के पास मौजूद नहीं है, लेकिन चूंकि यह "काफी पुराना मदरसा" है, इसलिए "परंपरागत रूप से" वेतन जारी है।
करोड़ों का राजकोषीय नुकसान
शिकायतकर्ता के अनुसार, हर वर्ष इस प्रकार के अवैध वेतन भुगतान से करोड़ों रुपये का राजकीय धन बर्बाद हो रहा है। वेतन भुगतान में जिस प्रकार की मनमानी और कूटरचना सामने आ रही है, वह न केवल शासनादेशों की अवहेलना है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही की जड़ों को भी कमजोर कर रही है।
क्या केवल “पुराना” होना पर्याप्त है?
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब किसी संस्थान के पास वैध मान्यता नहीं है, तो उसे राज्य कोष से भुगतान किस आधार पर किया जा रहा है? क्या केवल पुराना होना किसी भी शैक्षणिक संस्था को वैध बना देता है?
अब तक की स्थिति:
32 कर्मचारी वेतन पा रहे हैं
मान्यता की प्रति विभाग के पास नहीं
RTI में जुर्माना, फिर भी जवाब नहीं
मुख्यमंत्री को रजिस्टर्ड शिकायत, पर कार्रवाई नहीं
शिकायत निदेशालय तक पहुंची, लेकिन रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं
जनहित की अपील
यह मामला केवल गाज़ीपुर तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। यदि इस तरह की संस्थाएं बिना मान्यता के संचालित होती रहीं और करोड़ों की राशि यूं ही खर्च होती रही, तो यह न केवल वित्तीय नुकसान है, बल्कि शासन की साख को भी नुकसान पहुंचाता है।
सरकार और विभागों को चाहिए कि:
मदरसे की मान्यता की स्थिति सार्वजनिक करें
भुगतान की प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच कराएं
जिम्मेदार अधिकारियों पर जवाबदेही तय करें
जनहित में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए
यह कोई सामान्य अनियमितता नहीं, बल्कि शिक्षा, वित्त और प्रशासन – तीनों की संलिप्तता का गंभीर मामला है। गाज़ीपुर की यह ख़बर पूरे प्रदेश के लिए सबक है, कि जब तक पारदर्शिता और सत्य के साथ प्रशासन नहीं चलता – तब तक “विकास” केवल काग़ज़ पर लिखा एक शब्द ही रह जाएगा।