ग्रामीणों का कहना है कि कई बार विभाग को इस बारे में सूचित किया गया, लेकिन हर बार उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। अब गांव वालों ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उठाकर जिम्मेदार अधिकारियों से कार्रवाई की मांग की है।
सामाजिक संगठनों ने उठाई आवाज
इस गंभीर मामले को प्रमुखता से उठाया है बौद्ध कल्याणकारी महिला उत्थान ट्रस्ट के संस्थापक राजकुमार मौर्य और मानव उदय फाउंडेशन के अध्यक्ष उपेंद्र यादव ने। दोनों सामाजिक कार्यकर्ता तुरंत मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने बिजली विभाग के एसडीओ से संपर्क साधा और उन्हें मौके पर बुलवाया।
एसडीओ ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का निरीक्षण किया और ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि "इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान किया जाएगा और सुरक्षा के सभी उपाय सुनिश्चित किए जाएंगे।" हालांकि, ग्रामीणों को अब आश्वासन नहीं, कार्रवाई चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में क्षेत्रीय जे ई मरदह को तुरंत प्रभाव से ट्रांसफर कर दिया गया है। जब इस संदर्भ में पत्रकारों ने अधिशासी अभियंता से बात की, तो उन्होंने ट्रांसफर की पुष्टि तो की लेकिन इसके पीछे के कारण बताने से साफ इनकार कर दिया। इससे संदेह और गहराता जा रहा है कि कहीं न कहीं मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि संभावित भ्रष्टाचार का भी है।
यह पहली बार नहीं है जब गोविंदपुर गांव में बिजली विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हों। इससे पहले भी ग्रामीणों ने बिजली की अघोषित कटौती, खराब ट्रांसफार्मर, गलत बिलिंग और दफ्तरों में रिश्वतखोरी जैसे मुद्दों को लेकर कई बार विरोध प्रदर्शन किए हैं। लेकिन हर बार मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
ग्रामीणों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि इस बार भी सिर्फ खानापूर्ति की गई, तो वे संगठित आंदोलन करेंगे। उनकी प्रमुख मांगें हैं:
लटकते हाई टेंशन तार को तत्काल प्रभाव से दुरुस्त किया जाए।
प्राथमिक विद्यालय के ऊपर से गुजर रहे तार को हटाकर सही जगह किया जाए।
लापरवाह अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई हो।
गांव में बिजली से संबंधित समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए विशेष अभियान चलाया जाए।
गोविंदपुर का यह मामला सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि यह व्यवस्थागत लापरवाही और उत्तरदायित्वहीन प्रशासनिक रवैये का प्रतीक बन चुका है। जब तक जिम्मेदार अधिकारी फील्ड में उतरकर कार्रवाई नहीं करते, तब तक सोशल मीडिया पर उठी आवाजें और ग्राउंड से उठते सवाल अनसुने नहीं किए जा सकते।
अब देखना यह है कि क्या यह मामला भी पुराने मामलों की तरह भूला दिया जाएगा या इस बार वास्तव में कोई जवाबदेही तय होगी। ग्रामीणों ने एक बार फिर उम्मीद की किरण देखी है, अब जिम्मेदारों की परीक्षा है।