रिर्पोट: रामजन्म कुशवाहा
गाजीपुर। जखनिया तहसील क्षेत्र के धामपुर गांव के शहीद वीर अब्दुल हमीद ने आध्यात्मिक, धार्मिक, साहित्यिक सांस्कृतिक वह राजनीतिक विरासत संजोये गाजीपुर की उर्वरा धरा ने समय-समय पर ऐसे- ऐसे लाल पैदा किए हैं जिन्होंने अपने कर्मों के बल पर अमिट छाप छोड़ी है। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत राष्ट्र की रक्षा में देश की आन- बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर राष्ट्र की सेवा में अपने को समर्पित करने वाले रणबांकुरे की लंबी फेहरिस्त है। इसी कड़ी को कोहिनूर ०१ जून १९३३ को अब्दुल हमीद के रूप में पिता मोहम्मद उस्मान के घर पैदा हुआ। शहीद अब्दुल हमीद २१ वर्ष की उम्र में २७ दिसंबर १९५४ को ग्रेनेडियर इन्फैंट्री में भर्ती हो गये। शहीद अहमद प्रोन्नति पाकर लांस नायक और फिर ५ वर्ष की सेवा के बाद कार्टर मास्टर के पद पर तैनाती हुई। राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देनेे वाले इस वीर की नियुक्ति १९६२ के चीनी हमले के समय अपने बटालियन के साथ सातवीं इन्फेंट्री के साथ नेफा क्षेत्र में रही। परंतु वहां इन्हें कुछ कर गुजरने का कोई मौका नहीं मिला। सन १९६२ में जब भारत पाकिस्तान युद्ध शुरूूू हुुुआ तो मोर्चे पर जाने से पूर्व इन्होंने अपने भाई सेे कहां था- पलटन में इनकी बहत इज्जत होती है जिनके पास कोई चक्र (मेडल) होता है। देखना जुन्नान मै जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र लेकर जरूर लौटूंगा । भारत-पाकिस्तान के बीच सन १९६५ के युद्ध में पाकिस्तान ने अमृतसर को सब तरह से घेरकर अपने कब्जे में करने की चाल चली और पाक सेना खेमकरन सेक्टर के चिया गांव की ओर गोलीबारी करती बढ़ रही थी उसी क्षेत्र में मौजूद अब्दुल हमीद ने सीमित साधनों के बावजूद पाकिस्तानी फौज को आगे बढ़ने से रोकने में जिस अदम्य साहस का परिचय दिया वह भारत के स्वर्णिम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। अभेद्य
पैटर्न टैंक से लैस पाकिस्तानी फौजी १० सितंबर १९६५ को गोला बरसाते हुए आगे बढ़ रही थी तभी दुश्मन के इरादा और समय की नजाकत को भांप अब्दुल हमीद ने एक-एक कर तीन पैटर्न टैंक को नेस्तनाबूद कर दिया। बौखलायी पाकिस्तानी फौज ने तोपों का मुंह उधर कर दिया जिधर से टैंक को निशाना बनाकर आग के शोले में तब्दील कर दिया जा रहा था । चौथे पैटर्न टैंक का निशाना अब्दुल हमीद साध रहे थे तभी पाकिस्तानी फौज के गोले से शहीद हो गये। अपने साथी हमीद की हिम्मत को देखते भारतीय फौज दुगने उत्साह से दुश्मन फौज पर टूट पड़ी और पाकिस्तानी सेना को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इसी साहस के चलते मरणोपरांत भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र देने की घोषणा की और गणतंत्र दिवस पर २६ जनवरी १९६६ को तत्कालीन भारत के सर्वोच्च पद पर रहे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा शहीद हमीद की पत्नी रसूलन बीबी को यह सम्मान सौंपा गया था। परमवीर चक्र विजेता के पैतृक गांव में शहीद स्मारक पर प्रतिवर्ष १० सितंबर को भव्य समारोह आयोजित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। अभी तक शहीद स्मारक पर देश- प्रदेश के अनेकों राजनीतिक हस्तियों के साथ- साथ सेना के उच्चाधिकारी शहीद अब्दुल हमीद को अपना श्रद्धासुमन अर्पित कर गौरवान्वित कर चुके हैं। यहीं नहीं पंजाब में जिस स्थान पर अब्दुल हमीद ने वीर गति पाई थी वहां भी उनकी समाधि पर हर साल १० सितंबर को मेला आयोजित होता है। उनकी याद में पंजाब के खेमकरन सेक्टर में पैटर्न नगर बनाया गया है। जहां पैटर्न टैंक आज भी नुमाइश के तौर पर रखा गया है। ऐसे महान योद्धा को शत-शत नमन।
खुदी को कर बुलंद इतना, हर तस्वीर से पहले से।
खुदा बंदो से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है।