गाजीपुर। गाजीपुर सदर ब्लाक के छावनी लाइन ग्रामसभा के अंतर्गत आने वाले सरैया गांव में संचालित गौशाला में पशुओं के शव को गोबर में दफनाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब एक नई बहस ने तूल पकड़ लिया है। दरअसल, उसी गांव के निवासी सचिव पद पर नियुक्ति ने, न सिर्फ ग्रामीणों को चौंका दिया है, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 गौशाला में मिला गोबर में दफनाया गया पशु शव

पिछले दिनों सरैया गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय के पास बनी के गौशाला में दुर्गंध फैलने की शिकायत पर ग्रामीणों ने जब वहां जाकर देखा तो उन्हें एक दर्दनाक दृश्य देखने को मिला। और मीडिया पड़ताल में गौशाला परिसर में पशुओं का शव गोबर के ढेर में दबा हुआ मिला, जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

इस दृश्य ने प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा दिया। पशुओं की देखभाल के नाम पर चल रही इस गौशाला में अव्यवस्थित चारा, पानी और चिकित्सा सुविधा। ग्रामीणों ने बताया कि पशु कई दिनों से भूखे-प्यासे थे और अंततः मर रहे।

सचिव की नियुक्ति बन रही, विवाद की जड़

इस पूरे घटनाक्रम के बीच जब यह सामने आया कि सचिव पद पर नियुक्त स्वयं इसी ग्रामसभा के निवासी हैं, तो लोगों में हैरानी और आक्रोश दोनों देखने को मिला।

सामान्य प्रशासनिक नियमों के अनुसार, किसी भी ग्रामसभा में उसी गांव के व्यक्ति की नियुक्ति हितों के टकराव (Conflict of Interest) से बचने के लिए नहीं की जाती। लेकिन इस मामले में उस मूलभूत नियम की अवहेलना करते हुए सचिव को उसी गांव का सचिव बना दिया गया, जो कि न केवल नैतिकता बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी आपत्तिजनक माना जा रहा है।

डीपीआरओ का बयान: पल्ला झाड़ने की कोशिश?

जब इस मामले में जिला पंचायती राज अधिकारी (DPRO) से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा: दो तीन दिन पहले सरैया गौशाला गया था और प्रोफार्मा भर कर चला आया, वह और कुछ नहीं दिखा था। सचिव के सम्बन्ध में “प्रपोज मेरे पास आया, मैंने केवल उसे रिकमेंड किया। इस नियुक्ति की पूरी जिम्मेदारी पूर्व खंड विकास अधिकारी सदर रामकृपाल यादव की है। अब वही बताएं कि कैसे और क्यों नियुक्ति की गई।”

डीपीआरओ के इस बयान को प्रशासनिक पल्ला झाड़ने के तौर पर देखा जा रहा है। सवाल उठता है कि जब नियुक्ति में गड़बड़ी की संभावना थी, तो उसे रिकमेंड क्यों किया गया? क्या एक जिम्मेदार अधिकारी को सिर्फ दस्तावेज देखकर ही अनुशंसा कर देनी चाहिए, या जांच-पड़ताल आवश्यक है?

पूर्व बीडीओ की चुप्पी सवालों के घेरे में 

पूर्व खंड विकास अधिकारी सदर रामकृपाल यादव, जिनके ऊपर इस नियुक्ति की पूरी जिम्मेदारी डाली जा रही है, जो इस समय डीडीओ ऑफिस से संबद्ध बताए जाते है, जिनका जुलाई माह में रिटायरमेंट भी है। उन्होंने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह चुप्पी ग्रामीणों के बीच संदेह को और गहरा कर रही है।

लोग पूछ रहे हैं कि: क्या यह नियुक्ति योजनाबद्ध तरीके से की गई?

क्या सचिव को गांव में तैनात कर गौशाला की अनियमितताओं पर पर्दा डालने की कोशिश की गई?

और सबसे बड़ा सवाल, अगर सचिव गांव का हो, तो क्या वह निष्पक्ष कार्य कर सकेगा?

ग्रामीणों का आरोप: मिलीभगत से हुई नियुक्ति

गांव के लोगों का कहना है कि गौशाला की दुर्दशा के पीछे केवल लापरवाही नहीं, बल्कि अंदरूनी मिलीभगत की बू आ रही है।

एक ग्रामीण ने नाराज़गी जताते हुए कहा:

“ गांव के व्यक्ति को सचिव बनाकर नियुक्त किया गया है, जिससे साफ लगता है कि प्रशासन खुद को बचाने के लिए अपने ही लोगों को आगे कर रहा है।”

 नैतिकता बनाम व्यवस्था

सचिव की नियुक्ति को लेकर कुछ लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि स्थानीय व्यक्ति को गांव की स्थिति की बेहतर जानकारी होती है, जिससे कार्य में सुविधा होती है। लेकिन यह तर्क उस स्थिति में लागू हो सकता है जब पारदर्शिता और निष्पक्षता पर कोई आंच न आए।

वर्तमान स्थिति में जहां पशुओं की मौत, लापरवाही और प्रशासन की चुप्पी सामने आ चुकी है, वहां उसी गांव के व्यक्ति की नियुक्ति संदेह पैदा करती है।

सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया

मानवाधिकार एवं सामाजिक कल्याण से जुड़ी संस्थाएं इस मामले को गंभीरता से ले रही और कहा कि: “सरैया गांव की गौशाला में मवेशियों की मौत और गोबर में शव दबाने की घटना किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। ऐसे में उसी गांव के सचिव की नियुक्ति प्रशासनिक नैतिकता पर कलंक है। शासन को इसे तत्काल ध्यान देना चाहिए।”

 मांगें और सुझाव

इस पूरे प्रकरण को देखते हुए ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने मांग की हैं कि सचिव को स्थानांतरित किया जाए।

गौशाला की स्थिति की स्वतंत्र जांच हो।

मृत पशुओं के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

बीडीओ, सीवीओ और डीपीआरओ की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच हो।

भविष्य में ऐसी तैनातियों से पहले गांव से जुड़े हितों का मूल्यांकन किया जाए।

सरैया गांव की गौशाला में पशुओं की दुर्दशा और उसी गांव के व्यक्ति को सचिव की नियुक्ति से प्रशासन के क्रियान्वयन तंत्र की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। ऐसे समय में जब यू पी की लोकप्रिय योगी सरकार “सुशासन” का दावा कर रहा है, इस तरह की घटनाएं उस दावे को खोखला साबित करती हैं।

अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन दोनों अपनी जवाबदेही तय करें, ताकि भविष्य में किसी गांव के पशु भूख से न मरें और कोई नियुक्ति संदेह का कारण न बने।