जब तक प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक कोई भी अभियान सिर्फ कागजों पर...

गाजीपुर। उत्तर प्रदेश सरकार ने “समर्थ उत्तर प्रदेश-विकसित उत्तर प्रदेश/2047” नामक एक महत्त्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य प्रदेश को वर्ष 2047 तक विकसित राज्यों की श्रेणी में लाना बताया गया है। लेकिन आज पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, परन्तु क्या यह पहल वास्तव में ठोस परिणाम दे पाएगी या यह भी केवल एक और सरकारी औपचारिकता बनकर रह जाएगी?

सरकार द्वारा ऑनलाइन पोर्टल व क्यूआर कोड के माध्यम से आमजन से सुझाव आमंत्रित किए जा रहे हैं, परंतु असली सवाल यह है कि क्या इन सुझावों को वास्तव में नीति निर्माण में शामिल किया जाएगा? पहले भी कई योजनाओं में जनभागीदारी के नाम पर सुझाव मांगे गए, लेकिन अधिकांश मामले सिर्फ आंकड़ों तक ही सीमित रहे। इस बार भी वही दोहराव दिखाई दे रहा है।

जिलाधिकारी द्वारा अपील की गई है कि नागरिक सुझाव भेजें, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की स्थिति और डिजिटल साक्षरता की कमी अभी भी एक बड़ी बाधा है। ऐसे में कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि हर परिवार से कम से कम एक फीडबैक पोर्टल पर दर्ज हो? यह पहल डिजिटल रूप से समावेशी होने का दावा करती है, जबकि हकीकत में यह तकनीकी खाई को और चौड़ा करने वाला कदम बन सकता है।

अभियान के तहत जो गोष्ठियां ग्राम पंचायत व विकासखंड स्तर पर आयोजित की जाएंगी, वे अक्सर रस्म अदायगी बनकर रह जाती हैं। इसमें भी अधिकारियों का फोकस “शत-प्रतिशत” कार्य निष्पादन दिखाने तक सीमित रहता है, न कि नागरिकों की वास्तविक समस्याओं को सुनने और समाधान खोजने तक।

इस अभियान में 12 प्रमुख सेक्टरों पर फीडबैक मांगे गए हैं, परंतु अब तक सरकार द्वारा पिछली योजनाओं में जो वादे किए गए, उनका क्या हश्र हुआ, इस पर कोई मंथन नहीं किया जा रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अब भी बुनियादी समस्याएं जस की तस हैं। किसानों की आय दोगुनी करने की बात कहां पहुंची? युवाओं को रोजगार देने की योजनाएं कितनी सफल रहीं?

गाजीपुर जैसे कृषि प्रधान जिले में इस अभियान को “विशेष अहमियत” दी जा रही है, लेकिन पिछले वर्षों में किसान मजबूर रहा, लागत मूल्य में वृद्धि, और बाजार में अस्थिरता जैसे मुद्दों पर सरकार का क्या रुख रहा, यह किसी से छिपा नहीं है। केवल भविष्य की बात करना और वर्तमान की समस्याओं से मुंह मोड़ लेना कहीं से भी व्यावहारिक नहीं लगता।

अभियान को मजबूती देने के लिए प्रबुद्धजनों का भ्रमण प्रस्तावित है, लेकिन यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और निष्पक्ष होगी, इस पर भी सवाल उठते हैं। क्या ये ‘प्रबुद्धजन’ वास्तव में स्थानीय समस्याओं से अवगत हैं या केवल औपचारिक संवाद कर रिपोर्ट तैयार कर देंगे?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा घोषित यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति आयोग बैठक में दी गई प्रेरणा पर आधारित है। लेकिन विडंबना यह है कि जब तक प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक कोई भी अभियान सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगा।

सरकार का दावा है कि यह विजन डॉक्यूमेंट राज्य की नीतियों की दिशा तय करेगा, लेकिन यदि यह भी पूर्ववर्ती “विजन 2020” और “विजन 2030” की तरह बिना ठोस कार्यान्वयन और मूल्यांकन तंत्र के तैयार हुआ, तो यह बस एक और घोषणापत्र बनकर रह जाएगा।

अंत में यही कहा जा सकता है कि “समर्थ उत्तर प्रदेश-विकसित उत्तर प्रदेश/2047” की अवधारणा अच्छी है, लेकिन जब तक इसे क्रियान्वयन में पारदर्शिता, नागरिकों की वास्तविक भागीदारी और ठोस नीतिगत बदलावों से नहीं जोड़ा जाता, तब तक यह अभियान केवल प्रचार की एक और कड़ी ही माना जाएगा। जनता को सुनने की जगह उसे दिखाने की संस्कृति से अब बाहर आना होगा, तभी कोई भी अभियान सार्थक हो पाएगा।